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Friday, August 28, 2009

|| जय भवानी! जय शिवाजी! ||

इंद्र जीमी जंभ पर
वाघवसु अंभ पर
रावणस दंभ पर
रघुकुलराज है॥

पौन पारी बाह पर
संभु रति नाह पर
ज्यो साहस बाह पर
राम द्विजराज है!!!...

उदयात माउली,
रयतेस साउली,
गडकोट राउली,
शिवशंकर हा॥

मुक्ति ची मंत्रणा,
युक्ति ची यंत्रणा,
खळदुष्ट दूर्जना
प्रलयंकर हा

संतांस रक्षितो,
शत्रु नीखंडतो,
भावंड भावना संस्थापीतो॥

ऐसा युगे युगे स्मरणीय सर्वदा,
माता पिता सखा शिवभुप तो!!!

दावा द्रुमदंड पर
चीता म्रुग झुंड पर
वृषण वीतुंड पर
जैसे मृगराज है!!!...

तेज तम अंस पर
कंढ जिमी कंस पर
त्योमलीचबंस पर
सेर सीवराज हैं!!!॥

|| जय भवानी! जय शिवाजी! ||
|| जय भवानी! जय शिवाजी! ||

राजा शिव छत्रपती...


...राजा शिव छत्रपती...


राजमुद्रा


Thursday, August 27, 2009

आज दिन चढेया...

आज दिन चढेया

तेरे रंग वर्गा

फूल सा है खिला

आज दिन रब्बा मेरे दिन भी न ढले

वोह जो मुझे खवाब में मिले

उसे तू लगादे अब गले

तेनु दिल दा वास्ता

रब्बा आया दर दे यार के

सारा जहाँ छोड़ छाड़ के

मेरे सपने सवार दे

तेन्नु दिल दा वास्ता

आज दिन चढेया

तेरे रंग वर्गा


बख्शा गुनाहों को सुन के दुवो को

रब्बा प्यार है तुने सब को ही दे दिया

मेरी भी आहों को सुन ले दुवो को

मुझको वोह दिला मैंने जिसको है दिल दिया

आस वो प्यास वो

उसके दे इतना बता

वोह जो मुझको देख के हसे

पाना चहुँ रात दिन जिसे

रब्बा मेरे नाम कर उसे

तेनु दिल दा वास्ता

आज दिन चढेया

तेरे रंग वर्गा


माँगा जो मेरा है जाता क्या तेरा है

मैंने कौन सी तुझसे जन्नत मांग ली

कैसा खुदा है तू बस नाम का है तू

रब्बा जो तेरी इतनी सी भी न चली

चाहिए जो मुझे

कर दे तू मुझको अता

जीती रहे सल्तनत तेरी

जीती रहे आशिकी मेरी

देदे मुझे ज़िन्दगी मेरी

तेनु दिल दा वास्ता

रब्बा मेरे दिन भी न ढले

वोह जो मुझे खवाब में मिले

उसे तू लगादे अब गले

तेनु दिल दा वास्ता

रब्बा आया दर दे यार के

सारा जहाँ छोड़ छाड़ के

मेरे सपने सवार दे

तेन्नु दिल दा वास्ता

आज दिन चढेया

तेरे रंग वर्गा

ये दूरियां....

यह दूरियां
यह दूरियाँ
यह दूरियां

इन राहों की दूरियां
निगाहों की दूरियां
हम राहों की दूरियां
फनाह हो सभी दूरियां

क्यूँ कोई पास है
दूर है क्यूँ कोई
जाने न कोई यहाँ पे
आ रहा पास या
दूर मै जा रहा
जणू न मै हूँ कहाँ पे

यह दूरियां
इन राहों की दूरियां
निगाहों की दूरियां
हम राहों की दूरियां
फनाह हो सभी दूरियां
यह दूरियां
यह दूरियां

कभी हुआ यह भी
खाली राहों पे भी
तू था मेरे साथ
कभी तुझे मिलके
लौटा मेरा दिल यह
खाली खाली हाथ
यह भी हुआ कभी
जैसे हुआ अभी
तुझको सभी में पा ली
तेरा मुझे कर जाती है दूरियां
सताती हैं दूरियां
तरसती हैं दूरियां
फनाह हो सभी दूरियां

कहा भी न मैंने
नही जीना मैंने
तू जो न मिला
तुझे भूले से भी न
बोला न मैंने चांहू फासला
बस फासला रहे
बन के कसक जो कहें
हो और चाहत यह और जवान
तेरी मेरी मिट जानी है दूरियां
बेगानी है दूरियां
हट जनि दूरियां
फनाह हो सभी दूरियां

क्यूँ कोई पास है
दूर है क्यूँ कोई
जाने न कोई यहाँ पे
आ रहा पास या
दूर मै जा रहा
जणू न मै हूँ कहाँ पे

यह दूरियां
इन राहों की दूरियां
निगाहों की दूरियां
हम राहों की दूरियां
फनाह हो सभी दूरियां

Monday, August 24, 2009

जिंदगी के सफर में

जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते

फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं
फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं मगर
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग इक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
जिंदगी के सफर में...

आँख धोखा है, क्या भरोसा है
आँख धोखा है, क्या भरोसा है सुनो
दोस्तों शक दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हजारों सलाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
जिंदगी के सफर में...

सुबह आती है, शाम जाती है
सुबह आती है, शाम जाती है यूँही
वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
एक पल में ये आगे निकल जाता है
आदमी ठीक से देख पाटा नहीं
और पर्दे पे मंज़र बदल जाता है
एक बार चले जाते हैं जो दिन-रात सुबह-ओ-शाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
जिंदगी के सफर में॥


Thursday, August 6, 2009

मी...

मी जन्माला आलो
मी रांगायला लागलो
मी बोलायला शिकलो
मी चालायला लागलो
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी शाळेत गेलो
मी वाचायला शिकलो
मी लिहायला शिकलो
मी परिक्षा लिहिलो
मी इयत्ता ओलांडलो
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी प्रेमात ! पडलो
मी तिच्यासाठी रडलो
मी ओठांवरची लव कुरवाळलो
मी कॉलेजात गेलो
मी पिक्चर बघितलो
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी डोळे उघडले
मी अर्थ वाचले
मी प्रश्न लिहिले
मी शब्द गिळले
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी अजून जगतोय
मी अजून शिकतोय
मी अजून शोधतोय
मी अजून कळतोय
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी आत्मकेंद्री
मी आत्ममग्न
मी एककल्ली
मी स्वार्थी
मी जगन्मित्र
मी संवेदनशील
मी शिखंडी
मी खेळकर
मी अलवार
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी एके
मी दुणे
मी त्रिक
मी चोक
मी... वगैरे, वगैरे, वगैरे

मी एक शून्य...
मी सहज मिसळतो
सभोवतालास न बदलता
मी अवचित निसटतो
कोणासही न कळता
मी इच्छा बाळगतो
कुणासही न गुणण्याची
मी कुणासच भागनेच तसेच अर्थहीनच आहेच
मी प्रयत्न करतोय
मला अर्थ देणारा
डाविकडचा अंक मिळवण्याचा

मी ऊजेडाला सोडल्यावर
माझे काळोखाशीही वाजल्यावर
मीच मला कंटाळून विचारले...
का? कधी? कशासाठी? कोणासाठी?
त्यावर सापडलेले ऊत्तर असे...

कारण..."मी एक माणूस आहे
एका मार्काचा वस्तुनिष्ठ प्रश्न नाही"

माझी ही एक मैत्रीण होती...

माझी ही एक मैत्रीण होती,
खुप शांत अन अल्लड स्वभावाची,
कधीतरी यायची लहर तेव्हा ती,
लाजून गालातल्या गालात हसायची..

मधाच्या पोकळीतून बोल ऐकू यावे,
असं ती सुमधूर आवाजात बोलायची,
बोलता बोलता मग का कुणास ठाऊक,
ती अचानक गप्प होऊन जायची..

बागेतली फुले तीला आवडायच्याआधी,
ती त्या फुलांना आवडायची,
फुलेही तीची सवड बघून तिच्यासोबत,
आनंदाने बागडायची…

तिच्यासोबत चालता चालता,
वाटही कमी पडत असे,
तिच्या सहप्रवासात नेहमीच,
वाट पावलांनाच संपताना दिसे…

अशी काहीशी ती मला खुप आवडायची,
रोज रोज मला दिवसाच्या स्वप्नातही दिसायची,
तिला विचारण्याची हिम्मत माझ्यात नव्हती,
पण तरीही माझ्या मनास तिचीच आस असायची..

एकदा असचं तळ्याकाठी बसून,
तिचं प्रतिबिंब तळ्यात पाहत होतो,
विस्कटू नये म्हणून तरंगाना,
शांत रहा म्हणून सांगत होतो…
तेवढ्यात तिने मला विचारलं,
आज काय झालं आहे तूला?
मी उत्तरलो माहित नाही
पणमला काहितरी सांगायचे आहे तूला..

तुझी दृष्टी होऊन मला,
तुझं व्हायचं आहे,
तेवढ्यात ती उत्तरली,
मला दृष्टी नसेल तरी चालेल,
पण तुला एकदा माझ्या मिठीत,
माझ्या ह्या आंधळ्या डोळ्यानी पहायचं आहे..

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