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Sunday, August 29, 2010

अब मुझको जीना...

अब है उजाला, अब है सवेरा…
अब इन हवाओं, पे कर लून बसेरा
अब मैं ज़माने को, हुमराज़ कर लून
अब आसमानो पे, परवाज़ कर लून
इस पल में, है मुझ को जीना
अब मुझको जीना

नाकामियों से डरना क्या,जीने से पहले मरना क्या
झूम कर मेरा दिल अब यह मुझ से कहे,
ज़िंदगी है तो ज़िंदादिली भी रहे
अब इरादों को है तान लेना,अब तो ख्वाबों पे है जान देना
इस पल में, है मुझ को जीना
अब मुझको जीना

अंजाना कंगला मानु मैं,यह पल है अपना जानू मैं
यहाँ चारों तरफ प्यार के सिलसिले,
देखो वीरानियो में भी दिल हैं मिले
अपनी मंज़िल की मुझ को खबर है,
अब तो हिम्मत मेरी हमसफ़र है
इस पल में, है मुझ को जीना
अब मुझको जीना

Wednesday, August 25, 2010

बादल पे पाँव हैं...

सोचा कहा था, यह जो, यह जो हो गया
माना कहा था, यह लो, यह लो हो गया
चुटकी कोई काटो ना है हम तो होश में
कदमों को थामो यह है उड़ते जोश में

बादल पे पाँव हैं, या झूठा दाँव है
अब तो भाई चल पड़ी अपनी यह नाव है!!!


चल पड़े है हमसफर, अजनबी तो है डगर
लगता हमको मगर, कुछ कर देंगे हम अगर
ख्वाब में जो दिखा पर था छिपा बस जाएगा वो नगर

आसमान का स्वाद है, मुद्दतो के बाद है
सहमा दिल धकधक करें, दिन है या यह रात है
हाय तू मेहरबान क्यूँ हो गया बाखुदा, क्या बात है

Sunday, August 1, 2010

तो फक्त भूतकाळात जगतो...

काय माहित कोण हा
इतका लळा लावूनी जातो,
समजू न शकले कोणीच
म्हणून एकांताशी मैत्री करतो..

प्रेम म्हणजे स्वर्ग मानतो
दुखः मात्र एकटाच सहतो,
प्रेमात फक्त प्रेम द्यायचे
बस् ! तो इतकेच जाणतो..

एकतर्फी प्रेमात तिच्या
क्षणो क्षणी जळत राहतो,
गुंज मनाचे अबोल प्रेम
तो कवितांमधुनी रेखाटतो..

विसरण्याचा प्रयत्नही करतो
अश्रू मात्र डोळ्यांतच गिळतो,
नाही वर्तमान, नाही भविष्य
तो फक्त भूतकाळात जगतो..

- हरिष मांडवकर

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